What is Depreciation in Hindi

मूल्य ह्रास क्या है ( What is Depreciation in Hindi  )

What is Depreciation in Hindi


मूल्य ह्रास क्या है ।( What is Depreciation in Hindi )। मूल्य ह्रास का अर्थ क्या है। इसकी पूरी जानकारी मैं आर्टिकल में देने वाला हूं। मैंने जो भी इस आर्टिकल  समझाए है उन का शार्ट विवरण निम्न है 

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  • मूल्य ह्रास आशय ( ( Meaning of Depreciation )
  • मूल्य ह्रास की परिभाषा
  • मूल्य ह्रास के लक्षण या विशेषताएँ ( Characteristics of Depreciation )
  • मूल्य ह्रास उत्पन्न होने के कारण ( Reasons governing the existence of Depreciation )
  • मूल्य ह्रास आयोजन के उद्देश्य ( ( Objectives of Providing for Depreciation )
  • मूल्य ह्रास की राशि का निर्धारण करने वाले तत्व ( ( Factors Determining the Amount of Depreciation )
  • मूल्य ह्रास लगाने की पद्धतियाँ ( ( Methods of Charging Depreciation )

मूल्य ह्रास का अर्थ क्या है। ( What is the meaning of depreciation in  hindi )

प्रकृति का यह सामान्य नियम है कि जब भी कोई वस्तु या संपत्ति निरन्तर प्रयोग में लाई जाती है , तो उसकी उपयोगिता में कमी आती जाती है , जो उसके मूल्य में कमी का कारण बनती है । एक व्यवसाय को संचालित करने में अनेक प्रकार की स्थायी सम्पत्तियों की आवश्यकता होती है जैसे- भवन , यंत्र , फर्नीचर आदि । 

इन सम्पत्तियों का उपयोग वर्तमान और भविष्य में अनेक वर्षों तक लाभ कमाने के लिये किया जाता है । निरंतर उपयोग में आने से इनके मूल्य में आने वाली इस स्थायी कमी को ही लेखाशास्त्र की भाषा में मूल्य ह्रास कहते हैं । 

स्थायी संपत्ति के मूल्य में यह कमी संपत्ति के प्रयोग में आने , समय व्यतीत होने , उनके अप्रचलित होने जैसे अनेक कारणों से होती है । मूल्य ह्रास को अवक्षयण , घटौती , मूल्य अपकर्ष , घसारा , घिसावट आदि भी कहते हैं । व्यापार का शुद्ध लाभ - हानि ज्ञात करने के लिए अन्य व्ययों के समान इसका लेखा किया जाना भी आवश्यक होता है

मूल्य ह्रास की परिभाषाएँ ( Definitions of Depreciation in Hindi ) 

मूल्य ह्रास की प्रमुख परिभाषा निम्नानुसार हैं

1. प्रो . एण्ड्रयू मुनरो के अनुसार- 
मूल्य ह्रास स्थायी सम्पत्ति की लागत का वह भाग है , जो उसके उपयोगी जीवन के समाप्त होने पर वसूल नहीं हो सकता ।

संक्षेप में ,
मूल्य ह्रास किसी सम्पत्ति के गुण , परिणाम अथवा मूल्य में स्थायी तथा निरंतर होने वाली कमी को कहते हैं । यह कमी संपत्ति के प्रयोग , समय बीतने , अप्रचलन अथवा नवीन आविष्कारों के कारण होती है ।


मूल्य ह्रास के लक्षण या विशेषताएँ ( Characteristics of Depreciation in Hindi ) 


मूल्य हास के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

1. मूल्य में कमी- मूल्य हास किसी स्थायी संपत्ति के मूल्य में कमी बताता है । अतः इसके कारण संपत्ति का मूल्य कम हो जाता है ।

2. पुस्तकीय मूल्य - मूल्य हास का सम्बन्ध पुस्तकीय मूल्य ( Book Value ) से होता है , सम्पति के क्रय वाले वर्ष में उसका लागत मूल्य ही पुस्तकीय मूल्य होता है ।

3. स्थायी कमी- संपत्ति के पुस्तकीय मूल्य में यह कमी सदैव तथा स्थायी रूप से होती है

4. निरन्तर कमी- मूल्य हास से सम्पत्ति के मूल्य में कमी निरन्तर होती रहती है ।

5. स्थायी सम्पत्तियों पर- मूल्य हास केवल स्थायी सम्पत्तियों पर ही होता है , चल सम्पत्तियों पर नहीं ।

6. प्रकृति - मूल्य ह्रास की प्रकृति व्यय की भाँति होती है । व्यापार का शुद्ध लाभ - हानि ज्ञात करने के लिए इसका लेखा करना अनिवार्य होता है । प्रक्रिया - मूल्य हास , संपत्ति की लागत को उसके जीवनकाल में वितरित करने ( Allocation ) की प्रक्रिया है ।

8. पूर्वानुमान - मूल्य हास का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । धीरे - धीरे कमी- स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य में यह कमी धीरे - धीरे होती है ।

10. गुण और परिमाण में कमी- मूल्य हास के कारण संपत्ति के गुण एवं परिमाण दोनों में कमी आ सकती है ।

मूल्य ह्रास उत्पन्न होने के कारण ( Reasons governing the existence of Depreciation ) 


सम्पत्तियों के मूल्य में कमी आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. निरन्तर प्रयोग द्वारा ( Wear and Tear ) - सम्पत्तियों को निरन्तर प्रयोग में लाने के कारण उनकी कार्यक्षमता क्रमशः कम होती जाती है । इसी कारण नित्य प्रयोग में आने वाली सम्पत्तियाँ , जैसे- भवन , यन्त्र फर्नीचर , मोटरगाड़ी आदि के मूल्य में हास होता है ।

2. समय व्यतीत होना ( Effluxion of Expiration of Time ) - कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं , जो एक निश्चित अवधि के लिए होती हैं तथा जिनका मूल्य समय की गति के साथ घटता जाता है , चाहे उनका उपयोग किया जावे अथवा नहीं । 

पट्टे पर ली गई संपत्ति ( Leasehold Property ) , एकस्वाधिकार ( Patent Right ) और ठेका ( Contract ) इसी प्रकार की अमूर्त संपत्तियां हैं , जिनके मूल्य में ह्रास होता है ।

3. अप्रचलन ( Obsolescence ) - नये आविष्कारों के फलस्वरूप पुरानी सम्पत्तियाँ कम उपयोगी ? जाती हैं । अत : व्यावसायिक दृष्टि से पुराने यंत्र अनुपयोगी हो जाते हैं , जिन्हें बेचकर नये यंत्र खरीदने पड़ते हैं । ऐसी दशा में सम्पत्ति के पुस्तक मूल्य और विक्रय मूल्य में जो अंतर होता है , उसे मूल्य हास माना जाता है ।

4. मूल पदार्थों की समाप्ति ( Exhaustion of the subject matter ) -  कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती है , जो निरंतर उपयोग और उपभोग के कारण अपना मूल्य खोने लगती हैं । तेल के कुएँ , जंगल और खनिज पदार्थों की खानें इसी प्रकार की संपत्तियां हैं , 

जिनके दोहन के बाद उनके मूल पदार्थ समाप्त होने लगते हैं , और इनके मूल्य में कमी आती जाती है । ऐसे हास को रिक्तीकरण ( Depletion ) कहते हैं ।

5. दुर्घटनाएँ ( Accidents ) - दुर्घटनाओं के कारण सम्पत्तियों की पूर्ण अथवा आंशिक क्षति हो जाती है । भूकम्प , अग्नि - दुर्घटना , बिजली गिरना आदि आकस्मिक दुर्घटनाओं से यंत्र , भवन आदि क्षतिग्रस्त हो जाते हैं , जिससे उनके मूल्य में कमी हो जाती है । इस प्रकार की क्षति को ह्रास माना जाता है ।

6. बाजार मूल्य में स्थायी गिरावट ( Permanent fall in Market Price ) - कभी - कभी सम्पत्तियों का मूल्य बाजार में स्थायी तौर पर गिर जाता है । यदि निकट भविष्य में उनके मूल्य में सुधार होने की संभावना नहीं होती है , तो सम्पत्ति के मूल्य में जो स्थायी कमी होती है , उसे मूल्य हास माना जाता है ।


मूल्य ह्रास आयोजन के उद्देश्य ( ( Objectives of Providing for Depreciation in Hindi ) 


मूल्य ह्रास व्यापार का अप्रत्यक्ष व्यय है । इसका आयोजन करने के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार हैं

1. उत्पादन लागत मालूम करने के लिए- वस्तुओं के उत्पादन में स्थायी सम्पत्तियों का प्रयोग किया जाता है , जिससे उनके मूल्य में कमी आती है । अतः मूल्य हास को उत्पादन लागत में सम्मिलित किया जाना चाहिए । 

यदि ऐसा न किया जावे , तो उत्पादन लागत शुद्ध नहीं होगी । अतएव मूल्य ह्रास का प्रबंध आवश्यक है ।

2. शुद्ध लाभालाभ ज्ञात करने के लिए- व्यापार में स्थायी सम्पत्तियों के प्रयोग से लाभार्जन किया जाता है । ह्रास एक अप्रत्यक्ष व्यय है , जो लाभ प्राप्त करने में होता है । अतएव शुद्ध लाभालाभ ज्ञात करने के लिए यह आवश्यक है 

कि मजदूरी , वेतन तथा अन्य खर्चों की भाँति इसे भी लाभ - हानि खाते में लिख दिया जावे , ताकि व्यापार का शुद्ध परिणाम ज्ञात हो सके ।

3. सम्पत्तियों को उचित मूल्य पर दर्शाने के लिए- चिठे का उद्देश्य व्यापार की वास्तविक आर्थिक स्थिति प्रकट करना है । अतएव सम्पत्तियों के निरन्तर प्रयोग से होने वाले मूल्य हास का प्रबन्ध कर . उन्हें घटे हुए मूल्य पर चिठे में दिखाना चाहिए , जिससे चिट्ठा यथार्थ स्थिति प्रकट कर सके ।

4. सम्पत्ति को पुनः स्थापित करने के लिए- प्रत्येक सम्पत्ति एक निश्चित उपयोग के बाद निष्क्रिय हो जाती है । ऐसी दशा में उसे पुनः स्थापित करने की आवश्यकता होती है और करनी पड़ती है । 

यदि व्यापारिक लाभ में से प्रतिवर्ष मूल्य हास का प्रबन्ध कर कुछ रकम अलग रख दी जावे , तो निष्क्रिय सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के लिए आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता है ।

5. पूँजी को बनाये रखने के लिए- स्थायी सम्पत्तियाँ व्यापार में लगाई गई पूँजी से खरीदी जाती है । यह एक प्रकार से पूँजी का विनियोग है । 

सम्पत्तियों के प्रयोग से उनका मूल्य प्रतिवर्ष कम होता जाता सम्पत्ति कर है जिससे विनियोग का मूल्य अथवा पूँजी की मात्रा कम होती जाती है । अतः पूँजी को बनाये रखने के लिए मूल्य हास का प्रबन्ध करना आवश्यक हो जाता है ।

6. पूँजी का बँटवारा रोकने के लिए- व्यापार को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि पूँजी में किसी प्रकार की कमी न होने दी जावे , लेकिन मूल्य हास के आयोजन के अभाव में व्यापार का लाभ अधिक निकलता है , जिसका वितरण व्यापार - स्वामियों के बीच हो जाता है । 

इस प्रकार पूँजी का भाग बँट जाता है । अतः इसे रोकने के लिए हास प्रबन्ध की आवश्यकता है ।

7. आयकर में लाभ उठाने के लिए- मूल्य ह्रास के प्रबन्ध के अभाव में व्यापार अधिक लाभ दिखाता है , जिस पर अधिक आयकर देना पड़ता है । अतः आयकर में लाभ उठाने के लिये मूल्य हास का आयोजन आवश्यक है । आयकर विधान के अनुसार मूल्य हास की छूट दी जाती है ।

8. वैधानिक अनिवार्यता- भारतीय कम्पनी अधिनियम , 1956 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी को अपने लाभांश वितरण के पूर्व अपनी व्यापारिक स्थायी सम्पत्तियों पर हास का अपलेखन अनिवार्य है ।

9. आधुनिक यंत्रों का क्रय- वर्तमान वैज्ञानिक युग में दिन - प्रतिदिन नये - नये यंत्रों का आविष्कार हो रहा है । व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के दौर में व्यापार को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आधुनिक यंत्रों के प्रयोग द्वारा उत्पादन को तैयार करने की आवश्यकता होती है । इन यंत्रों के क्रय हेतु मूल्य ह्रास आयोजन करना जरूरी हो जाता है ।

मूल्य ह्रास की राशि का निर्धारण करने वाले तत्व  ( Factors Determining the Amount of Depreciation )


सामान्यतः मूल्य ह्रास की उचित राशि का निर्धारण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

1. सम्पत्ति का लागत मूल्य ( Cost of the Assets ) - सम्पत्ति के लागत मूल्य में उसके क्रय मूल्य के अतिरिक्त उसके लाने , लगाने व चालू करने में जो व्यय होते हैं , उसको भी सम्मिलित किया जाता है । इस लागत मूल्य पर ही मूल्य ह्रास का निर्धारण किया जाता है ।

2. सम्पत्ति का अनुमानित जीवन ( Estimated Life of the Assets ) - विशेषज्ञों की राय अथवा अनुभव के आधार पर सम्पत्ति की कार्यकारी अवधि का अनुमान लगा लिया जाता है । इस कार्य अवधि को ही उसका अनुमानित जीवन कहा जाता है । 

सम्पत्ति के मूल्य को उसके अनुमानित जीवन - काल में फैलाकर हास की राशि निर्धारित की जाती है ।

3. अवशिष्ट मूल्य ( Residual Value ) - अवशिष्ट मूल्य वह धनराशि है , जो किसी संपत्ति के बेकार हो जाने पर उसे बेचने से प्राप्त होती है । अवशिष्ट मूल्य को अवशेष मूल्य ( Break - up Value ) या रद्दी मूल्य ( Scrap Value ) भी कहते हैं । 

कुछ सम्पत्तियाँ ऐसी होती हैं , जिनका अवशिष्ट मूल्य नहीं होता है , जिन सम्पत्तियों का अवशिष्ट मूल्य प्राप्त हो सकता है , उन पर मूल्य ह्रास निर्धारित करते समय उनके अवशिष्ट मूल्य का भी अनुमान लगा लिया जाता है और इसे लागत मूल्य में से कम कर शेष मूल्य पर हास का आयोजन किया जाता है ।

4. सम्पत्ति का प्रयोग ( Use of the Assets ) - मूल्य हास की राशि या दर का निर्धारण करते समय सम्पत्ति के प्रयोग पर भी विचार किया जाता है । क्योंकि जो संपत्ति अधिक उपयोग में आती है , उसमें अपेक्षाकृत शीघ्र हास होता है । अतएव मूल्य हास की राशि अधिक होती है ।

5. सम्पत्ति का स्वभाव ( Nature of the Assets ) - मूल्य हास के निर्धारण में सम्पत्ति के स्वभाव का उपयोगिता प्रतिवर्ष समान रहे , तो मूल्य हास की राशि प्रतिवर्ष समान रहना चाहिए । इसके विपरीत यदि उपयोगिता कम होती जावे , तो वार्षिक मूल्य हास प्रतिवर्ष कम होते जाना चाहिए ।

6. विनियोजित पूँजी पर ब्याज ( Interest on Capital Invested ) - कुछ विद्वानों का मत है कि जो धनराशि सम्पत्ति में विनियोजित की गई है , यदि अन्यत्र की जाती , तो उस पर ब्याज का लाभ मिलता । अतएव इस ब्याज की राशि को सम्पत्ति के मूल्य में सम्मिलित कर मूल्य हास का निर्धारण करना चाहिए ।

7. वर्तमान सम्पत्ति पर पूँजीगत व्यय ( Capital Expenditure on Existing Assets ) - कभा - कभी मरम्मत व नवकरण के अतिरिक्त सम्पत्ति की वृद्धि अथवा विस्तार आदि पर भी व्यय किया जाता है । हास की राशि को निश्चित करते समय पूँजीगत व्यय को सम्पत्ति के मूल्य में सम्मिलित कर लेना चाहिए ।

8. मरम्मत व नवकरण ( Repairs and Renewals ) - मरम्मत व नवकरण से प्रायः सम्पत्ति की कार्यक्षमता बनी रहती है तथा उसके जीवन - काल में वृद्धि होती है । दीर्घ जीवन - काल हो जाने से मूल्य हास की दर कम रखी जाती है , जिससे वार्षिक मूल्य ह्रास की राशि में कमी आ जाती है ।

9. अप्रचलन की संभावना ( Possibility of Obsolescence ) - सम्पत्ति के जीवन - काल का अनुमान लगाते समय नये आविष्कारों का भी ध्यान रखना उचित होगा । क्योंकि नये आविष्कारों से पुराने यंत्र चलन के बाहर हो जाते हैं , जिससे उनके प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है । 

ऐसी संभावनाओं के कारण सम्पत्ति को शीघ्र रद्द करने के लिए मूल्य हास की दर में वृद्धि कर दी जाती है ।

मूल्य ह्रास लगाने की पद्धतियाँ ( ( Methods of Charging Depreciation ) 

व्यवसाय में अनेक प्रकार की सम्पत्तियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं , जिनका स्वभाव व स्वरूप भिन्न भिन्न होता है । अतः सम्पत्तियों के स्वभाव के अनुसार मूल्य ह्रास के प्रबन्ध के लिए भिन्न - भिन्न पद्धतियाँ अपनायी जाती हैं । 

प्रमुख पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं

1. स्थायी किश्त पद्धति या मूल लागत पद्धति ( ( Fixed Instalment Method or Original Cost Method )
2. घटती किश्त या हासमान शेष पद्धति ( Diminishing Balance Method )
3. वार्षिक वृत्ति पद्धति ( Annuity Method )
4. हास कोष पद्धति ( Depreciation Fund Method ) 
5.बीमा पॉलिसी पद्धति ( Insurance Policy Method ) 
6. वार्षिक मूल्यांकन पद्धति ( Annual Valuation Method )
7. मिश्रित ब्याज पद्धति ( Compound Interest Method )
8. गोलाकार विधि ( Global Method )
9. कार्यक्षमता घण्टा पद्धति ( Efficiency Hour Method )
10. प्रतिस्थापन लागत पद्धति ( Replacement Cost Method )
11. वर्ष की इकाइयों की जोड़ पद्धति ( The Sum of the Year Digits Method )
12. प्रयोग या किलोमीटर पद्धति ( The Use or Kilometer Method )

मैं उम्मीद करता हूं कि आप जान गए होंगे कि मूल्य ह्रास क्या है ।( What is Depreciation in Hindi ) मूल्य ह्रास का अर्थ क्या है।। यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा तो हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं । यदि आप के मन में मूल्य ह्रास से सम्बन्दित कोई सवाल है तो आप मुझ से कमेंट के माध्यम से पूछ सकते है मै  उनका जवाब देने की कोशिश  करुगा । 

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